........कुछ वो जो कहा जा सके, कुछ वो जो बांटा जा सके !!
गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
...एक तश्वीर जिन्दगी की
.....एक डायरी....एक खुली डायरी....जिसे आप पढ़ सकें...जिसे आप जान सकें। खुद को जानने समझने की कोशिश आप हर रोज करते हैं। टुकड़ों-टुकड़ों में आप खुद को जानते भी हैं...।....तो यह कहानी होगी मेरी और आपकी भी।
अपने बारे में कुछ कहना हमेशा से मुश्किल होता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है। उपलब्धियों के नाम पर मेरे खाते में कुछ खास नहीं है। जिन्दगी की गाड़ी चलती रहे इसलिए पत्रकारिता की दुनिया से कुछ मिल जाता है। कुछ वक्त ईटीवी में गुजारा फिलहाल वीओआई में सीधा-उल्टा कर रहा हूं।
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